Top - 200+ बचपन शायरी - Bachpan shayari in hindi


Bachpan shayari in hindi


bachpan shayari in hindi

  • बचपन की यादें

  • बचपन के दिनों को जिंदगी के सबसे सुनहरे दिनों में गिना जाता है। ये वो सबसे खास पल होते हैं, जब न ही किसी चीज की चिंता होती है और न ही किसी चीज की परवाह। हर किसी के बचपन का सफर यादगार और हसीन होता है, इसलिए अक्सर लोगों से मुंह से यह कहते जरूर सुना होगा कि “वो दिन भी क्या दिन थे।”


बचपन की यादों में खोने के लिए,

  • “बचपन की कहानी थी बड़ी सुहानी, बचपन में रह जाता, नहीं आनी थी जवानी।”
  • “बचपन की हंसी कहीं गुम हो गई है, शायद बड़े होने के सफर में पीछे रह गई है।”


हर एक पल अब तो बस गुज़रे बचपन की याद आती है, 
ये बड़े होकर माँ दुनिया ऐसे क्यों बदल जाती है।

कितनी भूखी होती है गरीब की ज़िन्दगी
उसके हिस्से का बचपन भी खा जाती है..

सपनों की दुनियाँ से तबादला हकीकत में हो गया,
यक़ीनन बचपन से पहले उसका बचपना खो गया।

कौन कहता नही आती बचपन की बरखा
शायद तुम भुल गये नाव बनानी कागद की !!

बचपन में तो शामें भी हुआ करती थी, 
अब तो बस सुबह के बाद रात हो जाती है।

अपना बचपन भी बड़ा कमाल का हुआ करता था,
ना कल की फ़िक्र ना आज का ठिकाना हुआ करता था।

लौटा देती ज़िन्दगी एक दिन नाराज़ होकर, 
काश मेरा बचपन भी कोई अवार्ड होता।

सुकून की बात मत कर ऐ दोस्त…
बचपन वाला रविवार अब नहीं आता !

शरारत करने का मन तो अब भी करता हैं,
पता नही बचपन ज़िंदा हैं या ख़्वाहिशें अधूरी हैं।

वक्त से पहले ही वो हमसे रूठ गयी है,
बचपन की मासूमियत न जाने कहाँ छूट गयी है।

हँसते खेलते गुज़र जाये वैसी शाम नही आती,
होंठो पे अब बचपन वाली मुस्कान नही आती।

हँसते खेलते गुज़र जाये वैसी शाम नही आती,
होंठो पे अब बचपन वाली मुस्कान नही आती।

चुपके-चुपके ,छुप-छुपा कर लड्डू उड़ाना याद है.
हमकोअब तक बचपने का वो जमाना याद है..!!

किसने कहा नहीं आती वो बचपन वाली बारिश, 
तुम भूल गए हो शायद अब नाव बनानी कागज़ की।

वो बचपन की अमीरी ना जाने कहां खो गई,
जब पानी में हमारे भी जहाज चलते थे!

बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो 
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे 

मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है 
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है 

काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था

वक्त से पहले ही वो हमसे रूठ गयी है,
बचपन की मासूमियत न जाने कहाँ छूट गयी है।

भटक जाता हूँ अक्सर खुद हीं खुद में,
खोजने वो बचपन जो कहीं खो गया है।

वो क्‍या दिन थे… मम्‍मी की गोद और पापा के कंधे, 
न पैसे की सोच और न लाइफ के फंडे, न कल की चिंता और न

बचपन से पचपन तक का सफ़र यूं बीत गया साहब,
वक़्त के जोड़ घटाने में सांसे गिनने की फुरसत न मिली।

झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम

अपना बचपन भी बड़ा कमाल का हुआ करता था,
ना कल की फ़िक्र ना आज का ठिकाना हुआ करता था।

कुछ ज़्यादा नहीं बदला‌ बचपन से‌ अब तक,
बस‌‌ अब वो बचपन‌ की‌ जिंद समझौते में बदल रहीं है।

खुशियाँ भी हो गई है अब उड़ती चिड़ियाँ,
जाने कहाँ खो गई, वो बचपन की गुड़ियाँ।

कौन कहता है कि मैं जिंदा नहीं,
बस बचपन ही तो गया है बचपना नहीं।

कौन कहता है कि मैं जिंदा नहीं,
बस बचपन ही तो गया है बचपना नहीं।

वो शरारत,वो मस्ती का दौर था,
वो बचपन का मज़ा ही कुछ और था।

कौन कहता है कि मैं जिंदा नहीं,
बस बचपन ही तो गया है बचपना नहीं!

हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में

हे ईश्वर अब तुम एक ऐसी कहानी रचना,
बचपन में ही हो मरण ऐसी जिंदगानी लिखना !!

बचपन की यादें मिटाकर बड़े रास्तों पे कदम बढ़ा लिया,
हालात ही कुछ ऐसे हुए की बच्चे से बड़ा बना दिया।

किताबों से निकल कर तितलियाँ ग़ज़लें सुनाती हैं
टिफ़िन रखती है मेरी माँ तो बस्ता मुस्कुराता है

किसने कहा नहीं आती वो बचपन वाली बारिश
तुम भूल गए हो शायद अब नाव बनानी कागज़ की

हर एक पल अब तो बस गुज़रे बचपन की याद आती है,
ये बड़े होकर माँ दुनिया ऐसे क्यों बदल जाती है।

बचपन में तो शामें भी हुआ करती थी,
अब तो बस सुबह के बाद रात हो जाती है।

वक्त से पहले ही वो हमसे रूठ गयी है, 
बचपन की मासूमियत न जाने कहाँ छूट गयी है।



Bachpan poetry in hindi



दहशत गोली से नही दिमाग से होती है,
और दिमाग तो हमारा बचपन से ही खराब है.

सब कुछ तो हैं, फ़िर क्यों रहूँ उदास..
तेरे जैसा मैं भी बन पाता मनमौजी;
लतपत धूल-मिट्टी से, लेता खुलकर साँस।

एक इच्छा है भगवन मुझे सच्चा बना दो
लौटा दो मेरा बचपन मुझे बच्चा बना दो

इक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में
ढूँढता फिरा उस को वो नगर नगर तन्हा

खुदा अबके जो मेरी कहानी लिखना
बचपन में ही मर जाऊ ऐसी जिंदगानी लिखना!!

कितना आसान था बचपन में सुलाना हम को,
नींद आ जाती थी परियों की कहानी सुन कर.

खुदा अबके जो मेरी कहानी लिखना
बचपन में ही मर जाऊ ऐसी जिंदगानी लिखना.

बचपन में खेल आते थे हर इमारत की छाँव के नीचे…
अब पहचान गए है मंदिर कौन सा और मस्जिद कौन सा..!!

बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे जहां चाहा रो लेते थे
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसूओं को तनहाई

चले आओ कभी टूटी हुई चूड़ी के टुकड़े से,
वो बचपन की तरह फिर से मोहब्बत नाप लेते हैं।

मोहल्ले में अब रहता है पानी भी हरदम उदास!!
सुना है पानी में नाव चलाने वाले बच्चे अब बड़े हो गए!!

आजकल आम भी पेड़ से खुद गिरके टूट जाया करते हैं
छुप छुप के इन्हें तोड़ने वाला अब बचपन नहीं रहा

ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर
बस अपनी ही धुन, बस अपने सपनो का घर
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर।

बचपन की कहानी याद नहीं
बातें वो पुरानी याद नहीं
माँ के आँचल का इल्म तो है
पर वो नींद रूहानी याद नहीं।

बचपन के खिलौने सा कहीं छुपा लूँ तुम्हें,
आँसू बहाऊँ, पाँव पटकूँ और पा लूँ तुम्हें।

कुछ नहीं चाहिए तुझ से ऐ मेरी उम्र-ए-रवाँ
मेरा बचपन, मेरे जुगनू, मेरी गुड़िया ला दे ।

अजीब सौदागर है ये वक़्त भी,
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया!

हर एक पल अब तो बस गुज़रे बचपन की याद आती है,
ये बड़े होकर माँ दुनिया ऐसे क्यों बदल जाती है।

काग़ज़ की नाव भी है, खिलौने भी हैं बहुत
बचपन से फिर भी हाथ मिलाना मुहाल है

लौटा दों कोई मुझे वो मेरें बालपन का सावन
वो कागद की किश्ती वो भादो की बारिश का पानी !!

कोई मुझको लौटा दे वो बचपन का सावन,
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी।

किसने कहा, नहीं आती वो बचपन वाली बारिश,
तुम भूल गए हो शायद अब नाव बनानी कागज़ की।

अभी भी याद आता है वो बचपन जो बीत गया!!
जीवन में खुशियों का पल उसी समय से छूट गया!!

कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से,
कहीं भी जाऊँ मेरे साथ-साथ चलते हैं ।

मै उसको छोड़ न पाया बुरी लतों की तरह,
वो मेरे साथ है बचपन की आदतों की तरह.

बचपन की यादें मिटाकर बड़े रास्तों पे कदम बढ़ा लिया,
हालात ही कुछ ऐसे हुए की बच्चे से बड़ा बना दिया।

बड़ी हसरत से इंसाँ बचपने को याद करता है
ये फल पक कर दोबारा चाहता है ख़ाम हो जाए

बचपन के खिलौने सा कहीं छुपा लूँ तुम्हें
आँसू बहाऊँ पाँव पटकूँ और पा लूँ तुम्हें

अपना बचपन भी बड़ा कमाल का हुआ करता था,
ना कल की फ़िक्र ना आज का ठिकाना हुआ करता था।

चलो के आज बचपन का कोई खेल खेलें, 
बडी मुद्दत हुई बेवजाह हँसकर नही देखा।

बचपन मैं यारों की यारी ने,
एक तोफ़ा भी क्या खूब दिया,
उनकी बातों के चक्कर में पड़,
माँ बापू से भी कूट लिया।

ईमान बेचकर बेईमानी खरीद ली
बचपन बेचकर जवानी खरीद ली,
न वक़्त, न खुशी, न सुकून
सोचता हूँ ये कैसी जिन्दगानी खरीद ली ।

बचपन में आकाश को छूता सा लगता था,
इस पीपल की शाख़ें अब कितनी नीची हैं ।

जब भी मुझको अपना बचपन याद आता है
बचपन के इक प्यार का बचपन याद आता है

अजीब सौदागर है ये वक़्त भी
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया.

झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम

वो शरारत, वो मस्ती का दौर था,
वो बचपन का मज़ा ही कुछ और था।

बचपन की दोस्ती थी बचपन का प्यार था
तू भूल गया तो क्या तू मेरे बचपन का यार था

कोई मुझको लौटा दे वो बचपन का सावन,
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी।

देखा करो कभी अपनी माँ की आँखों में भी,
ये वो आईना हैं जिसमें बच्चे कभी बूढ़े नही होते।

गुम सा गया है अब कही बचपन,
जो कभी सुकून दिया करता था।

मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई
आज तक मसरूफ़ हूँ उस ख़्वाब की तकमील में

हँसते खेलते गुज़र जाये वैसी शाम नही आती,
होंठो पे अब बचपन वाली मुस्कान नही आती।

लगता है माँ बाप ने बचपन में खिलौने नहीं दिए, 
तभी तो पगली हमारे दिल से खेल गयी।

जिसने मेरे बचपन की पदचाप सुनी
अपने घर का ऐसा कोना हाथ लगा

बचपन में जहाँ चाहा हँस लेते थे
जहाँ चाहा रो लेते थे और अब
मुस्कान को तमीज चाहिए
और आंसुओं को तन्हाई!!

जिंदगी फिर कभी न मुस्कुराई बचपन की तरह, 
मैंने मिट्टी भी जमा की खिलौने भी लेकर देखे।

एक हाथी, एक राजा, एक रानी, के बग़ैर
नींद बच्चों को नहीं आती कहानी के बग़ैर



Bachpan shayari in Urdu



बहुत शौक था बचपन में
दूसरों को खुश रखने का,
बढ़ती उम्र के साथ
वो महँगा शौक भी छूट गया।

ईमान बेचकर बेईमानी खरीद ली
बचपन बेचकर जवानी खरीद ली,
न वक़्त, न खुशी, न सुकून
सोचता हूँ ये कैसी जिन्दगानी खरीद ली।

बचपन मैं यारों की यारी ने,
एक तोफ़ा भी क्या खूब दिया,
उनकी बातों के चक्कर में पड़,
माँ बापू से भी कूट लिया।

भूख चेहरों पे लिए चाँद से प्यारे बच्चें
बेचतें फिरते हैं गलियो में गुब्बारे बच्चें

कुछ ज़्यादा नहीं बदला‌ बचपन से‌ अब तक,
बस‌‌ अब वो बचपन‌ की‌ जिंद समझौते में बदल रहीं है।

आजकल आम भी पेड़ से खुद गिरके टूट जाया करते हैं, 
छुप छुप के इन्हें तोड़ने वाला अब बचपन नहीं रहा।

इतनी चाहत तो लाखो रुपए पाने की भी नहीं होती
जितनी बचपन की तस्वीर देखकर बचपन में जाने की होती है

फ़रिश्ते आ कर उन के जिस्म पर खुशबु लगाते है
वो बच्चे रेल के डिब्बों मे जो झुण्ड लगाते है!!

नींद तो बचपन में आती थी,
अब तो बस थक कर सो जाते है।

कितना कुछ जनता होगा, वो दोस्त मेरे बारे में,
जो मेरी मुस्कुराहट देख कर कहता है, चल बता उदास क्यों है !

बचपन में भरी दुपहरी नाप आते थे पूरा गाँव, 
जब से डिग्रियाँ समझ में आई, पाँव जलने लगे।

झुठ बोलतें थें फ़िर भी कितने सच्चें थें हम
बात ऊन दिनों की है जब बच्चें थे, हम !!

बचपन में किसी के पास घड़ी नही थी,
मगर टाइम सभी के पास था,
अब घड़ी हर एक के पास है,
मगर टाइम नही है!

तू बचपन में ही साथ छोड़ गयी थी,
अब कहाँ मिलेगी ऐ जिन्दगी,
तू वादा कर किसी रोज ख़्वाब में मिलेगी।

बचपन को कैद किया, उम्मीदों के पिंजरों में, 
एक दिन उड़ने लायक कोई परिंदा नही बचेगा।

कोई तो रुबरु करवाओ
बेखोफ़ हुए बचपन से,
मेरा फिर से बेवजह
मुस्कुराने का मन हैं।

इतनी चाहत तो लाखो
रुपए पाने की भी नहीं होती,
जितनी बचपन की तस्वीर
देखकर बचपन में जाने की होती है।

याद आता है वो बीता बचपन,
जब खुशियाँ छोटी होती थी।
बाग़ में तितली को पकड़ खुश होना,
तारे तोड़ने जितनी ख़ुशी देता था।

रोने की वजह भी न थी,
न हंसने का बहाना था;
क्यो हो गए हम इतने बडे,
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था।

याद आता है वो बीता बचपन!!
जब खुशियाँ छोटी होती थी!!
बाग़ में तितली को पकड़ खुश होना!!
तारे तोड़ने जितनी ख़ुशी देता था!!

बचपन भी क्या खूब था ,
जब शामें भी हुआ करती थी,
अब तो सुबह के बाद,
सीधा रात हो जाती है।

बचपन के दिन भी कितने अच्छे होते थे
तब दिल नहीं सिर्फ खिलौने टूटा करते थे
अब तो एक आंसू भी बर्दाश्त नहीं होता
और बचपन में जी भरकर रोया करते थे

ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी
मगर मुझ को लौटा दो बचपन का सावन
वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी।

महफ़िल तो जमी बचपन,
के दोस्तों के साथ,
पर अफ़सोस अब बचपन नहीं है,
किसी के पास!

जिम्मेदारियों ने वक्त से पहले,
बड़ा कर दिया साहब,
वरना बचपन हमको भी बहुत पसंद था!

कितने खुबसूरत हुआ करते थे
बचपन के वो दिन,
सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से,
दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी।

मेरे दिल के किसी कोने में,
एक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया,
बड़ा होने से डरता है

बहुत खूबसूरत था,
महसूस ही नहीं हुआ,
कब कहां और कैसे
चला गया बचपन मेरा।

बचपन से जवानी के सफर में,
कुछ ऐसी सीढ़ियाँ चढ़ते हैं..
तब रोते-रोते हँस पड़ते थे,
अब हँसते-हँसते रो पड़ते हैं।

ईमान बेचकर बेईमानी खरीद ली
बचपन बेचकर जवानी खरीद ली
न वक़्त, न खुशी, न सुकून
सोचता हूँ ये कैसी जिन्दगानी खरीद ली

Shayari on Bachpan


बचपन में जहाँ चाहा हँस लेते थे
जहाँ चाहा रो लेते थे और अब
मुस्कान को तमीज चाहिए
और आंसुओं को तन्हाई

ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर
बस अपनी ही धुन, बस अपने सपनो का घर
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर

हज़ारों शेर मेरे सो गये काग़ज़ की क़ब्रों में
अजब माँ हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता

अब वो खुशी असली नाव
मे बैठकर भी नही मिलती है,
जो बचपन मे कागज की नाव
को पानी मे बहाकर मिलती है।

कितने खुबसूरत हुआ करते थे
बचपन के वो दिन,
सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से
दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी 

कुछ यूं कमाल दिखा दे ऐ जिंदगी,
वो बचपन ओर बचपन के दोस्तो
से मिला दे ऐ जिंदगी।

अपने बच्चों को मैं बातों में लगा लेता हूं
जब भी आवाज़ लगाता है खिलौने वाला

ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर
बस अपनी ही धुन बस अपने सपनो का घर
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर

वो बचपन भी क्या दिन थे मेरे
न फ़िक्र कोई न दर्द कोई
बस खेलो, खाओ, सो जाओ
बस इसके सिवा कुछ याद नही

बचपन भी कमाल का था
खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें
या ज़मीन पर
आँख बिस्तर पर ही खुलती थी

ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर
बस अपनी ही धुन, बस अपने सपनो का घर
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर।


इतनी चाहत तो लाखो,
रुपए पाने की भी नहीं होती,
जितनी बचपन की तस्वीर,
देखकर बचपन में जाने की होती है!

ऐ जिंदगी तू ले चल मुझे,
बचपन के उस गलियारे में,
जहाँ मिलती थी हमें खुशियाँ,
गुड्डे-गुड़ियों के ब्याह रचाने में।

रोने की वजह भी न थी
न हंसने का बहाना था
क्यो हो गए हम इतने बडे
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था

बचपन भी कमाल का था
खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें
या ज़मीन पर
आँख बिस्तर पर ही खुलती थी


Thank you



To Top